Sunday, December 5, 2010

नैनो की बिक्री बढाने के लिए टाटा की नयी रणनीति

क्रांतिकारी शुरुआत के बाद विश्व की सबसे सस्ती कार नैनो के निर्माता अब सोचने पर मजबूर हो गए हैं ! विभिन्न कारणों से विलंब के बाद सानंद से निकली नैनो उपभोक्ताओं तक पहुचने के बाद इसके उपकरणों में लगी आग की घटना से लोग थर्रा उठे हैं ! जो उपभोक्ता दो पहिया वाहन को छोड़ इस स्कीम में शामिल हुए थे , वे अब इस विचार को त्याग दिए हैं ! जिसका असर नैनो की बिक्री पर साफ नज़र आता है !जहाँ २००९ नवम्बर माह में इसकी बिक्री ९००० थी वहीँ २०१० नवम्बर माह में इसकी संख्या घटकर मात्र ५०० रह गयी ! बिक्री में भारी गिरावट को देखते हुए टाटा मोटर्स ने अपनी रणनीति में ब्यापक बदलाव किया है ! जिससे बहुत से रोजगार सृजित हुए हैं ! रणनीति के तहत कंपनी १२ राज्यों में अपनी विशेष पहुँच केंद्र खोलेगी जहाँ इस कार की बिक्री होगी !इसके लिए १२०० से अधिक लोगों को नियुक्त किया जाएगा जो ११० पहुँच केन्द्रों की निगरानी करेंगे ! जहा १०० से अधिक पहुँच केन्द्रों पर १००० से अधक लोगों को रोजगार मिलेगा ! इस रणनीति का मुख्य उद्देश्य बड़े कस्बों और गावों में नैनो के शौक़ीन लोगों के बीच अपनी अधिक से अधिक उपस्थिति दर्ज कराना है !



भविष्य में मांग के अनुसार उन राज्यों में बिक्री केन्द्रों की संख्या बढ़ाई जा सकती है यदि कंपनी की बिक्री पहुँच पूर्ण रूप से राज्य में न हो ! कंपनी के आधिकारिक सूत्रों के अनुसार इन केन्द्रों पर और अधिक लोगों को सर्विस के लिए नियुक्त किया जाएगा जो टाटा मोटर्स और उसके वितरकों द्वारा प्रशिक्षित होंगे ! नियुक्त लोगों को प्रशिक्षण के दौरान आटोमोबाइल तकनीक की प्राथमिक जानकारी के साथ- साथ प्रोडक्ट ,बिक्री की कला ,अलग -अलग उपभोक्ताओं की पहचान तथा आर्थिक सलाहकार के रूप में प्रशिक्षित किया जाएगा ! टाटा मोटर्स गंभीरता के साथ अपनी इस सबसे सस्ती कार (१.४ लाख -२ लाख ) को अधिक से अधिक बेचने के लिए बाज़ार की सभी संभावित तकनीक का इस्तेमाल करना चाहती है ! कंपनी , नैनो के उन सभी उपभोक्ताओं की क्षमता को अच्छी तरह से जानना चाहती है ,जो दो पहिया वाहन को छोड़ इसे खरीदना चाहते हैं अथवा जिनके पास कोई भी वाहन नहीं हैं ! टाटा के अनुसार टाटा अब कुछ लोगों को फ्री टेस्ट ड्राईव देना चाहती है जो नैनो कार खरीदने के लिए इच्छुक हैं लेकिन उनको ड्राईविंग नहीं आती !

Tuesday, September 28, 2010

मत देख इस तरह , निगाहों में बड़ा दम है।

इंसान तू भी है ,इंसान हम भी हैं .

Saturday, May 8, 2010

६ मई २०१०

दिन गुरुवार ,तारीख थी मई और साल २०१० देश की तमाम जनता टकटकी लगाये हुए अपलक टीवी स्क्रीन पर नज़रे गडाए हुए थीबहुत खास दिन था उन सभी लोगो के लिए जो २६/११ जैसी घटनाओं को अंजाम देते हैं और उनके लिए भी जो ऐसी घटनाओं में अपनों को खो दियाबहुत कुछ प्रोत्साहन देने वाला था ये दिन, की आगे ऐसे काम करने वालों के हौसले पस्त होंगे या मस्ती से आगे बढ़ते जायेंगे ,या फिर कानून अपना जलवा दिखायेगा और करोडो लोगो के दिलों को जीतते हुए , अपनी साख को बरकरार रखते हुए कुछ ऐसा करेगा जिसका बेसब्री से इंतजार तमाम दिलों में दफ़न थाऔर ऐसा ही हुआ दिलों में दफ़न इंतजार की घड़ियाँ खत्म हुई और फैसला आया जनता के पक्ष में जो चाहती थीकानून भी अपनी ताकत दिखाया और उन लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया जो ऐसे कारनामों को अंजाम देने के फिराक में रहते हैं या करते हैंइस दिन ने एक बार फिर २६/११ की घटना की याद दिला दियापूरा मुंबई सिहर उठा था उस दिनसायद ही भारत में कभी इतना बड़ा आतंकी घटना हुआ होभगवान करे की ऐसा फिर कभी कोई दिन आयेउस दिन को याद करते ही जितना दुःख हुआ उससे कहीं अधिक खुशी तब हुई जब घटना को अंजाम देने वाले एकमात्र जिन्दा शख्स कसाब को सजाये मौत की सजा सुनाई गयीयह उन लोगो के लिए सबक थी कि जो भी ऐसा किया उसका यही हश्र होगा
और तो और मैं सबसे अधिक न्यायाधीश तहलियानी जी का शुक्रिया अदा करता हूँजिन्होंने दिन -रात अपनी कड़ी मेहनत के चलते मात्र १७ महीने में ही इस आरोपी /दोषी को उसके अंजाम तक पहुँचाया दिन कितना दुखी दिन था इसका अंदाज़ा इसी से लगा लीजिये कि फेसबुक ने १८ देशों कि एक इंडेक्स जारी कियाजिसमे हिन्दुस्तानी लोग सबसे ज्यादा खुश होली और १५ अगस्त को नज़र आते हैं जबकि सबसे ज्यादा दुःख उन्हें २६/११ /२००८ के मुंबई हमले के फौरन बाद हुआ थाठीक एक दिन बाद यानी २७ नवम्बर २००८ को फेसबुक पर भारत का हैपीनेस इंडेक्स देखा जाये तो सबसे निचले स्तर पर थापर मई इन सारी चुप्पिओं को तोड़ते हुए उन सभी के चहरे पर एक बार फिर मुस्कराहट कि लहर वापस सौंप दी जिसका इंतजार काफी अरसे से था
इन सबके परे एक बात अभी भी लोगों को काट खाए जा रही है कि आखिर इस कसाब को लटकाया कब जायेगाकाट खाना भी लाजिमी है आखिर अफजल गुरु को जिसे कब कि सजा हो चुकी है पर अभी तक लटकाना तो दूर , कब लटकाया जायेगा ये भी नहीं मालूमपर आशा करता हूँ कि जैसे ये सब हुआ वैसे ये भी हो जायेगा और अगर ऐसा नहीं हुआ तो भारत सरकार के लिए इससे शर्मनाक बात और कोई नहीं हो सकतीअगर एक लड़की कि ह्त्या और रेप के मामले में धनञ्जय चटर्जी को फाँसी पर लटकाया जा सकता है तो इनको क्यों नहीं ...? क्या इसका जुर्म उससे कम है..? जिस दिन ये फाँसी के फंदे पे लटक गया उस दिन ही सही मायने में भारत वासियों को ख़ुशी होगीअब ये आने वाला समय ही बताएगा कि मामू जल्लाद या किसी और जल्लाद कि ख्वाहिश पूरी होती है या भारत वासी इस आधी ख़ुशी के साथ मायूस होते हैंआशा करता हूँ भारत सरकार ऐसा नहीं होने देगी जरुर भारतवासियों को खुश देखना चाहेगी .................................................... !

Thursday, February 11, 2010

डोंट ट्राई टू ऑफ ..............................

करोडो युवाओं के दिल की धड़कने तेज़ हो गयी हैं ! आँखों से नींद गायब ! मन में बेचैनी !अब तो उनकी रातें सपनों के साथ ही गुजरती हैं या यूँ कहें की अब तो उनकी रातें सपनों के साथ ही पूरी होती हैं ! बिना सपने के कोई रात ही नहीं !खैर रात तो किसी तरह गुजर जाती है पर जरा सोचिये दिन का क्या होता होगा !शायद पुरे दिन सर पर हाथ रखे किसी गंभीर मुद्दे का हल ढूढ़ रहे हो !तो एक तरफ खुली हुई आँखे आसमान को फाड़ फाड़ कर देख रही है !सोच रहे हैं आखिर कैसे मिला जायेगा ,क्या कहूँगा ,क्या गिफ्ट करूँगा, तमाम सवाल मन को कौंध रहे हैं !उपर्र से जालिम इस दुनिया की नज़र !देख नहीं सकता ये !एक पल के लिए भी किसी को सकूँ से देखना उसे नहीं भाता !ये भी नहीं सोचता की आखिर साल में एक ही दिन की तो बात है !अगर इसी में वे खुश हैं तो क्या बुरे है !पर नहीं !तो भुगतो कौन भुँग्तेगा !एक तरफ तो कहने को हम विकसित हो रहे हैं दुसरे देशों को अपने पीछे छोड़ रहे है !पर लगता है की सोच वहो की वही है सौ साल पहले वाली !पर कुछ युआ ऐसी सोच वालो को सुधारने की कवायद शुरू कर दिए हैं जैसा की हमेशा होता है !जारी रहा तो कभी ना कभी सुधर ही जायेंगे !
वैलेंटाइन डे को लेकर कितने सपने देखते हैं ये युवा पर ये लोग एक ही झटके में तोड़ देते हैं !बर्दास्त की भी सीमा होती है !और ये सीमा हर बार कुछ लोग तोड़ते हैं ऐसे में ये हैरान परेशान युवा भी जवाब देना शुरू कर दिए हैं !आखिर लोकतांत्रिक देश है ! पर यहाँ तो गज़ब हो गया राजनीती ने भी हाथ पव मारना
ऐसे में श्रीराम सेना प्रमुख प्रमोद मुतालिक पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उनके मुख पर कालिख पोतकर अपने को युवाओं का समर्थक के रूप में जताना कितना उचित है ये तो आने वाला समय ही बताएगा ! अब शायद राजनीती में एक और नएअद्ध्याय की शुरुआत हो गयी है! वह है सी दिन का भी इस्तेमाल करो !चलो कम से कम तो किसी को तो यंगिस्तान की खबर है !
इन महाशय को क्या जरुरत थी !कम से कम ये सोचा होता की अब भारत ,भारत नहीं आज़ाद भारत है ! जब उनको कोई परेशानी नहीं है तो आपको क्या परेशानी थी ! शादी तो करा न पाए उलटे अपना मुख ही काला करवा बैठे !खैर अब ये युवा अकेले नहीं है अब राजनीती भी साथ देना शुरू कर दी है ,देखते हैं अब अपना उल्लू सीधा करने का ये कौन तरीका है !

Sunday, January 3, 2010

जस्ने साल




नए साल की जस्न की तैयारी की शुरुआत बड़े ही जोर शोर के साथशुरू हुई.हो भी क्यों ना २०१० जो कुछ पलों में ही आने वाला था ! कहीं दो करोड़ के ठुमके लगे तो किसी को लाखों से हो संतोष करना पडा .शहर के बड़े बड़े होटल तमाम किस्म की रंगीनियों के साथ सराबोर हुई पार्टियों में डूबे हुए थे .कोई दो हजार का दारु पि रहा है ,तो कोई पब में जाकर अपनी रईसीका ठाठ बाट दिखा रहा है .जो जितना पिएगा ,जितने अलग अलग लोगों के साथ नाचेगा ,जिसके पास जितने ...............हो ...वह उतना ही बड़ा आदमी .एक तरफ इतनी तैयारी वह भी जस्न की और दूसरी तरफ चेहरे पर मासूमियत ,आँखों मेंएक ख्वाब लिए की शायद आज भर पेट भोजन का इंतजाम हो जाएगा के साथ ही एक छोटी सी बच्ची हाथ में गुलदस्ता लिए चिल्ला रही है बाबू जी ले लो बहुत सस्ता है ,सुबह से भूखी हूँ ,ले लो ना बाबू जी ,बाबू जी ........लेकिन बाबू जी को कोई फर्क नहीं पड़ता .वे तो किसी माल से शोपिंग करेंगे और साथ में होंगी ..............फिर बाबू जी क्यों ले ! सड़क छाप गुलदस्ता .पर बाबू जी को क्या पता यह उनकी एक दिन के सिगरेट से भी सस्ता है .एक तरफ कोक्क्टेल पार्टी हो रही है तो दूसरी तरफ शायद इस दिन भरपेट भोजन मिल जाए की आशा .कितनी अजीब दस्ता है नये साल की .काश इसे हम बदल देते ?