Saturday, May 8, 2010

६ मई २०१०

दिन गुरुवार ,तारीख थी मई और साल २०१० देश की तमाम जनता टकटकी लगाये हुए अपलक टीवी स्क्रीन पर नज़रे गडाए हुए थीबहुत खास दिन था उन सभी लोगो के लिए जो २६/११ जैसी घटनाओं को अंजाम देते हैं और उनके लिए भी जो ऐसी घटनाओं में अपनों को खो दियाबहुत कुछ प्रोत्साहन देने वाला था ये दिन, की आगे ऐसे काम करने वालों के हौसले पस्त होंगे या मस्ती से आगे बढ़ते जायेंगे ,या फिर कानून अपना जलवा दिखायेगा और करोडो लोगो के दिलों को जीतते हुए , अपनी साख को बरकरार रखते हुए कुछ ऐसा करेगा जिसका बेसब्री से इंतजार तमाम दिलों में दफ़न थाऔर ऐसा ही हुआ दिलों में दफ़न इंतजार की घड़ियाँ खत्म हुई और फैसला आया जनता के पक्ष में जो चाहती थीकानून भी अपनी ताकत दिखाया और उन लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया जो ऐसे कारनामों को अंजाम देने के फिराक में रहते हैं या करते हैंइस दिन ने एक बार फिर २६/११ की घटना की याद दिला दियापूरा मुंबई सिहर उठा था उस दिनसायद ही भारत में कभी इतना बड़ा आतंकी घटना हुआ होभगवान करे की ऐसा फिर कभी कोई दिन आयेउस दिन को याद करते ही जितना दुःख हुआ उससे कहीं अधिक खुशी तब हुई जब घटना को अंजाम देने वाले एकमात्र जिन्दा शख्स कसाब को सजाये मौत की सजा सुनाई गयीयह उन लोगो के लिए सबक थी कि जो भी ऐसा किया उसका यही हश्र होगा
और तो और मैं सबसे अधिक न्यायाधीश तहलियानी जी का शुक्रिया अदा करता हूँजिन्होंने दिन -रात अपनी कड़ी मेहनत के चलते मात्र १७ महीने में ही इस आरोपी /दोषी को उसके अंजाम तक पहुँचाया दिन कितना दुखी दिन था इसका अंदाज़ा इसी से लगा लीजिये कि फेसबुक ने १८ देशों कि एक इंडेक्स जारी कियाजिसमे हिन्दुस्तानी लोग सबसे ज्यादा खुश होली और १५ अगस्त को नज़र आते हैं जबकि सबसे ज्यादा दुःख उन्हें २६/११ /२००८ के मुंबई हमले के फौरन बाद हुआ थाठीक एक दिन बाद यानी २७ नवम्बर २००८ को फेसबुक पर भारत का हैपीनेस इंडेक्स देखा जाये तो सबसे निचले स्तर पर थापर मई इन सारी चुप्पिओं को तोड़ते हुए उन सभी के चहरे पर एक बार फिर मुस्कराहट कि लहर वापस सौंप दी जिसका इंतजार काफी अरसे से था
इन सबके परे एक बात अभी भी लोगों को काट खाए जा रही है कि आखिर इस कसाब को लटकाया कब जायेगाकाट खाना भी लाजिमी है आखिर अफजल गुरु को जिसे कब कि सजा हो चुकी है पर अभी तक लटकाना तो दूर , कब लटकाया जायेगा ये भी नहीं मालूमपर आशा करता हूँ कि जैसे ये सब हुआ वैसे ये भी हो जायेगा और अगर ऐसा नहीं हुआ तो भारत सरकार के लिए इससे शर्मनाक बात और कोई नहीं हो सकतीअगर एक लड़की कि ह्त्या और रेप के मामले में धनञ्जय चटर्जी को फाँसी पर लटकाया जा सकता है तो इनको क्यों नहीं ...? क्या इसका जुर्म उससे कम है..? जिस दिन ये फाँसी के फंदे पे लटक गया उस दिन ही सही मायने में भारत वासियों को ख़ुशी होगीअब ये आने वाला समय ही बताएगा कि मामू जल्लाद या किसी और जल्लाद कि ख्वाहिश पूरी होती है या भारत वासी इस आधी ख़ुशी के साथ मायूस होते हैंआशा करता हूँ भारत सरकार ऐसा नहीं होने देगी जरुर भारतवासियों को खुश देखना चाहेगी .................................................... !