Sunday, January 3, 2010

जस्ने साल




नए साल की जस्न की तैयारी की शुरुआत बड़े ही जोर शोर के साथशुरू हुई.हो भी क्यों ना २०१० जो कुछ पलों में ही आने वाला था ! कहीं दो करोड़ के ठुमके लगे तो किसी को लाखों से हो संतोष करना पडा .शहर के बड़े बड़े होटल तमाम किस्म की रंगीनियों के साथ सराबोर हुई पार्टियों में डूबे हुए थे .कोई दो हजार का दारु पि रहा है ,तो कोई पब में जाकर अपनी रईसीका ठाठ बाट दिखा रहा है .जो जितना पिएगा ,जितने अलग अलग लोगों के साथ नाचेगा ,जिसके पास जितने ...............हो ...वह उतना ही बड़ा आदमी .एक तरफ इतनी तैयारी वह भी जस्न की और दूसरी तरफ चेहरे पर मासूमियत ,आँखों मेंएक ख्वाब लिए की शायद आज भर पेट भोजन का इंतजाम हो जाएगा के साथ ही एक छोटी सी बच्ची हाथ में गुलदस्ता लिए चिल्ला रही है बाबू जी ले लो बहुत सस्ता है ,सुबह से भूखी हूँ ,ले लो ना बाबू जी ,बाबू जी ........लेकिन बाबू जी को कोई फर्क नहीं पड़ता .वे तो किसी माल से शोपिंग करेंगे और साथ में होंगी ..............फिर बाबू जी क्यों ले ! सड़क छाप गुलदस्ता .पर बाबू जी को क्या पता यह उनकी एक दिन के सिगरेट से भी सस्ता है .एक तरफ कोक्क्टेल पार्टी हो रही है तो दूसरी तरफ शायद इस दिन भरपेट भोजन मिल जाए की आशा .कितनी अजीब दस्ता है नये साल की .काश इसे हम बदल देते ?