खा रहे हैं देश को
बदल रहे हैं भेष को
पैदा कर रहे हैं दुएष को
कहते हैं हम नेता हैं
खिला हे हैं बम को
दे रहे हैं गम को
छीन रहे हैं दम को
कहते हैं हम नेता हैं
पैर फैला रहे हैं सोने की बेड पर
दिखा रहे हैं टीवी सेट पर
आलू भी बिचवा रहे हैं चांदी के
रेट पर कहते हैं हम नेता हैं
देश को बना रहे हैं खाख
बेसहारों की बेच रहे हैं आँख
राजनीति में बना रहे हैं शाख
कहते हैं हम नेता हैं !
ye neta ji ki aachar sahita hai samjhe devendre ji.kafi achi soc hai aap ki
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